Kite Status
- कूचा-ब-कूचा फिरते हैं अब इस तरह ‘बशर’. भटके है जैसे हाथ से टूटी हुई पतंग.
- कैसे कह दूँ ख़ामुशी से और ऊँचा कर मुझे. मैं मोहब्बत की पतंग कटने लगी हूँ शोर से.
- कैसे कहूँ क्या हाल हुआ ख़ार-ज़ार में. दिल की पतंग जब से गई दस्त-ए-यार मेंv
- कोठे पर चढ़ के उड़ाया न करें आप पतंग. डोरे डालें न कहीं यार उड़ाने वाले.
- कोठों पे मुँह-अँधेरे सितारे उतर पड़े. बन के पतंग मैं भी हवा में उड़ा किया.
- क्या अजब है जो दिया जान को यकबार पतंग. ता-सहर शम्अ कूँ जलने सेती फ़ुर्सत नीं है.
- क्या आसमाँ उठाते मोहब्बत में जब कि दिल. तार-ए-निगह में उलझी हुई इक पतंग था.
- वो डोर है तो मिरे हाथ में रहेगी सदा. पतंग है तो हवा में उसे उड़ाऊँगा.
- वो दूर आसमान पे चढ़ती पतंग की. इक डोर थे कि टूट गए दरमियाँ से हम.
- वो पतंग उड़ने उड़ाने का मज़ा क्या जाने. जो न उलझी हो कभी शोख़ हवा से पहले.
- शब शम्अ’ पर पतंग के आने को इश्क़ है.उस दिल-जले के ताब के लाने को इश्क़ है.
- सर-रिश्ता-ए-वफ़ा से क्या शम्अ’-रू हैं वाक़िफ़. हम ने पतंग उन से मिलना उड़ा दिया है.
- सितमगरी या तशद्दुद हमारा ढंग न हो. ये हँसती खेलती दुनिया कटी पतंग न हो.
- हम इतने नादान भी नहीं हैं के बारिशों में पतंग उड़ाएँ. हमारी इतनी ख़राब आदत कभी थी जानाँ पर अब नहीं है.
- हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है. पतंगों में अगर ढल जाएँ हम तो आसमाँ छू लें.
- हमें भी होवे इजाज़त कि शम्अ-रू तुझ पर. पतंग की नमत इक दम तू आस-पास फिरें.
- हर पाँव से उलझा हूँ कटी डोर के मानिंद. ‘तारिक़’ मिरी क़िस्मत की पतंग जब से कटी है.
- हवा के हाथों हुआ परेशाँ. पतंग बन कर मैं क्या उड़ा था.
- हवाएँ चुप थीं लहकती जिहत पे कोई न था. पतंग लूट के आया तो छत पे कोई न था.
- हसरत-ए-ख़ाक है परवाने की . अरमाँ एक पतंग है बाबा.
- हुई दिल में जब से है शोला-ज़न मिरी आतिश-ए-इश्क़ की हर नफ़स. जो पतंग ओ शम्अ’ में देखिए न वो सोज़ है न गुदाज़ है.
- हुस्न इस शम्अ-रू का है गुल-रंग. क्यूँ न बुलबुल जले मिसाल-ए-पतंग.
- हुस्न में जब तईं गर्मी न हो जी देवे कौन. शम्-ए-तस्वीर के कब गिर्द पतंग आते हैं.
- हैं इसी तहरीक में आख़िर फ़ना. शम्अ की लौ में फ़ना जैसे पतंग.
- गर्दन पे जिस की कितनी पतंगों का ख़ून था. मुद्दत हुई पतंग हमारी वो कट गई.
- गर्म-रौ राह-ए-फ़ना का नहीं हो सकता पतंग. उस से तो शम्अ-नमत सर भी कटाया न गया.
- गिरेगी कौन सी छत पे ये कब किसे मालूम. कटी पतंग हवाओं के इम्तिहान में है.
Kite Status In Hindi
- घर के माँझे की डोरी छत पतंग और बच्चा. अब कहाँ ये मिलते हैं चरखियों के पहलू में.
- चढ़े हैं काटने वालों पे लूटने वाले. इसी हुजूम-ए-बला में पतंग उड़ती है.
- चल दिला वो पतंग उड़ाता है. अभी आने में उस के ढील सी है.
- चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने. बढ़ाने पर पतंग आए तो चर्ख़ी खोल दी हम ने.
- जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है,. देखी तो होंगी तुम ने पतंगें कटी हुई.
- जब से पतंग हूँ मैं तिरे शम्अ-रू का यार. मालूम था न तुझ को उड़ाना पतंग का.
- जला दिया जो पतंग अब न रो हुआ सो हुआ. ऐ शम्अ’ सुब्ह को जो हो सो हो हुआ सो हुआ.
- जश्न-ए-मुरव्वत में लोगों की ऊँची उड़ी पतंग. मर्ग-ए-मुरव्वत में उन सब का ‘अनवर’ रोया नाम.
- जाओ बारिश का एहतिमाम करो. अब्र-ए-आवारा से पतंग बनाओ.
- अज़ीज़ क़द्रों पे जाँ-कनी की गिरफ़्त मज़बूत हो गई है. पतंग की तरह कट चुके हैं तमाम रिश्तेv
- अब तो रखा है काट हमारा ये आप ने. ग़ैरों से मिल पतंग उड़ाते हो जब न तब.
- अब हैं सौ- सौ ख़्वाहिशें जीवन तेरे संग. बचपन तक अच्छी लगीं तितली और पतंग.
- आई हुई गिरफ़्त में है गर्द-बाद की. अब जंगलों में जा के गिरेगी पतंग ये.
- आता है क्या नज़र उसे शोले में शम्अ के. देता है जान-बूझ के क्यूँ अपना जी पतंग.
- इतनी भी पतंग पेश-क़दमी!. गर शाम नहीं सहर गए हमv
- इश्क़ कहता है कि सर-रिश्ता दिल का मेरे हाथ. जूँ पतंग इक दिन कटा कर मैं लुटा दूँ तो सही.
- उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग. जगमगा उठा गगन बसंत आ गई.
- उड़ती हुई पतंग के मानिंद मैं भी हूँ. मज़बूत एक डोर से लेकिन बँधा हुआ.
- उन की हसरत है उड़ें वो अर्श पर बन कर पतंग. और फिर उन को संभालूँ बन के मैं इक डोर सा.
- उलझ रही है नई डोर नर्म हाथों से. पतंग शाख़-ए-शजर पर अड़े हुए हैं कहीं.
- उस शम्अ-रू ने अपने शहीदों की जूँ पतंग. गड़ने न दीं ज़मीन में लाशें जलाइयाँ.
- उसे था शौक़ बहुत आसमान छूने का. ये कट गई थी हमारी पतंग क्या करते.
- उस्तुख़ाँ-बंदी-ए-तन-ए-मजनूँ. अपनी नज़रों में है पतंग का ढाँच.
- एक उजली उमंग उड़ाई थी. हम ने तुम ने पतंग उड़ाई थी.
- एक पतंग उड़ती है मेरी सोच में रोज़. डोर लिए वो पस-मंज़र में रहता है.
- कई पतंग की सूरत ख़ला में डूब गया. वो जितना तेज़ था इतना ही ला-उबाली था.
- कटी पतंग की मानिंद डोलते हो तुम. मुझे वतन से निकाले गए लगे हो तुमv
- कटी पतंग सी अटकी हूँ शाख़-ए-नाज़ुक पर. हवा का हाथ भी करता है तार तार मुझे.
- कटी पतंग हूँ मैं और बे-सहारा हूँ. मुझे कहा नहीं उस ने कि मैं तुम्हारा हूँv
- कभी ये आँखें ख़ुद भी उड़ा करती थीं पतंग के साथ. दूर दरीचे से होते थे इशारे हैरत वाले.
- कल अगर इक है पतंग, आज बने उस की डोर. है असर कल का वक़्त-ए-हाल पे ऐसा पुर-ज़ोरv
- कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा. सादा माँझे का उसे माह ने गोला भेजा.
- कहीं फ़लक पे सरकती है सरसराती हुई. कहीं दिलों की फ़ज़ा में पतंग उड़ती हैv
- काटती है पतंग ग़ैरों की. हम से तक्कल तिरे उड़ा न करे.
- डरो अपने जी की उमंग से. कटे क्यूँ निगाह पतंग से.
- डोर औरों की हथेली में रखी है हम ने. ज़िंदगी तेरी पतंग हम से उड़ाई न गईv
- डोर, चरखी, पतंग सब कुछ था,. उसके घर की तरफ हवा न चली.
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- तवाफ़-ए-सोख़्ता-ए-इश्क़ देख ले ऐ शम्अ. करे है जलने से आगे पतंग-ए-मफ़्तूँ रक़्स.
- तुझ को पतंग उड़ाते देखा जो आशिक़ों ने. कट मर के बैठे अक्सर घर-वर लुटा लुटा कर.
- तुम पतंग बन के हवाओं में तैरती फिरो. और डोर मिरे हाथों को काटती रहे.
- तेरे हाथों में डोर है या दिल. हो गया हूँ पतंग या कुछ और.
- दम-ए-सुब्ह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म से कम न थी मेहरबाँ. कि चराग़ था सो तू दूद था जो पतंग था सो ग़ुबार था.
- दाना-ए-इश्क़ बो रहा है पतंग .सोख़्ता गरचे है ज़मीन-ए-शम्अ’.
- दिखाई देती है बस मुझ को अपनी पतंग. आसमान और मिरे दरमियाँ.
- देख कैसा पतंग की ख़ातिर. शोला-ए-शम्अ हाथ मलता है.
- देखे ज़रा कोई कि हूँ कैसा मलंग मैं. बरसात में चला हूँ उड़ाने पतंग मैं.
- देता है कफ़ से दौलत-ए-पा-बोस शम्अ की. रो देगा सर पे धर के फिर आख़िर पतंग दस्त.
- न जाने कितने थे ‘शाहीन’ उस के मतवाले. अगरचे शाख़ में उलझी हुई पतंग थी वो.
- नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है. माँझा है काट-दार रंगीली पतंग है.
- पक्के पक्के रंगों की कच्ची डोर के बल पर. इक पतंग अपनी भी उन के बाम तक पहुँचे.
- पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद. कि उस की अपनी अबा में पतंग उड़ती है.
- पतंग कटने का बाइस और है कुछ. अगरचे डोर भी उलझी पड़ी है.
- पतंग क्यूँकर न होवे हैराँ कि शम्अ शब को दिखा रही है. ब-चश्म-ए-गिर्यां ओ ताज-ए-ज़र से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ.
- पतंग टूट के आँगन के पेड़ में उलझी. शरीर बच्चों की यलग़ार मेरे घर पहुँची.
- पल में धज्जी धज्जी बिखरने वाली ऐसी है ये ज़ीस्त. इक से ज़ियादा बच्चों के हाथों में जैसे कटी पतंग.
- ब-जुज़ दरीद-ओ-बुरीद और क्या है उस का मआल .वो फिर भी डोर से टूटी हुई पतंग रहा.
- बात सही सन् सत्तावन-अट्ठावन की होगी. मैं छोटा था, पतंग देख कर ख़ुश होता था.
- बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग .ख़ुर्शीद ओ माह डोर के फिर किस की गोले हैं.
- बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी. अटक गई है सितारे में इक पतंग मिरी.
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- मज्लिस में रात एक तिरे परतवे बग़ैर. क्या शम्अ क्या पतंग हर इक बे-हुज़ूर था.
- माँझा कोई यक़ीन के क़ाबिल नहीं रहा तन्हाइयों के पेड़ से अटकी पतंग हूँ.
- मार कर लकड़ी किसी की फाड़ देता था पतंग. बे-वज्ह ख़ुद दूसरों से कर लिया करता था जंग.
- मिट्टी में मिलने वाले हैं कल उस के चीथड़े. उड़ती रहे पतंग भले आसमान में.
- मेरे ख़्वाबों की पतंग मुझ से. करती है अन-गिनत सवाल.
- मैं मआल-ए-हुस्न-ओ-वफ़ा पे कुछ नज़र अपनी डालने जब लगान पतंग ही थे न शम्अ’ थी वो पिघल गई तो वो जल गए.
- मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में. चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया.
- यारो मैं क्या कहूँ कि जला किस तरह पतंग. पूछो ज़बान-ए-शम्अ से उस की लगन की बातv
- ये जो लाल रंग पतंग का सर-ए-आसमाँ है उड़ा हुआ. ये चराग़ दस्त-ए-हिना का है जो हवा में उस ने जला दिया.
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- ये देखकर पतंगें भी हैरान हो गई. कि अब तो छतें भी हिंदू-मुसलमान हो गईं.
- रहा था शम्अ’ से मज्लिस में दोष कितना फ़र्क़. कि जल बुझे थे ये हम पर पतंग था आगे.
- लड़कों की जंग देखो. डोर और पतंग देखो.
- लोग बिल्कुल पतंग जैसे हैं. मैं ज़रा सी जो ढील देती हूँ.
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